आज किस इस पोस्ट में हम Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay करेंगे दोस्तों शायद ही कोई होगा
जो जय शंकर प्रसाद जी को नहीं जानता होगा उनके द्वारा लिखी गई कविताएं या कहानियाँ हमे 5वी class से लेकर कॉलेज तक में पढ़ाई जाती है।
इस पोस्ट में हमने आपको जयशंकर प्रसाद के जीवन के बारे में तथा उनके द्वारा लिखी गई प्रसिद्ध रचनाओं को के बारे में सारी जानकारी मिलेगी इसलिए इस पोस्ट को शुरू से अंत तक जरूर पढ़े
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जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचयन | jay Shankar prasad Jeevan Parichay
नाम | जय शंकर प्रसाद साहू |
जन्म तिथि | 30 जनवरी 1889 |
आयु (मृत्यु के समय) | 48 बर्ष |
जन्म तथा मृत्यु स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश (भारत) |
मृत्यु तिथि | 15 नवंबर 1937 |
पेशा | नाटककार, कवि, कहानीकार तथा उपन्यासकार |
भाषा | हिंदी और संस्कृति |
शैली | अलंकृत एवं चित्रोपम |
नाटक | अजातशत्रु, चन्द्रगुप्त और स्कंदगुप्त |
कहानी संग्रह | आँधी और इंद्रजाल |
जन्म और माता पिता –
30 जनवरी 1889 को जय शंकर प्रसाद जी का जन्म वाराणसी में हुआ था उनके पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद तथा उनकी माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था
वह अपने परिवार में अपने सारे भाई बहन में सबसे छोटे थे वह अपने माता-पिता की आठवीं संतान थे पूरे बनारस में उनका परिवार प्रतिष्ठित परिवारों में से एक गिना जाता था
उनके पिता का तम्बाकू का व्यापार था उनके दादा का नाम बाबू शिवरतन साहू था
पिता का नाम | बाबू देवी प्रसाद |
माता का नाम | श्रीमती मुन्नी देवी |
पत्नी का नाम | कमल देवी |
दादा का नाम | बाबू शिवरतन साहू |
जयशंकर प्रसाद का बचपन –
जैसा की हमने पहले बताया इनका परिवार बहुत ही समृद्ध परिवारों में से एक था। इनके परदादा के ज़माने से ही तम्बाकू का खूब बड़ा व्यापार चला आ रहा था
इनके पिता बाबू देवी प्रसाद साहू तथा दादा बाबू शिवरतन साहू दोनों ही बड़े ही परोपकारी स्वभाव के थे
जयशंकर प्रसाद अपने परिवार की आंखों के तारा थे वो भी अपने पिता और दादा की तरह भगवान के बड़े भक्त थे
उनकी माता उन्हे खूब प्यार करती थी लेकिन वो प्यार ज़्यादादेर तक चल नहीं सका जय शंकर प्रसाद जब 16 साल के थे तब उनकी माँ किसी कारण से मृत्यु हो गई तथा वह सबको छोड़कर स्वर्ग सिधार गई
Jaishankar prasad ka Jivan Parichay तथा जीवन की मुश्किलें
जयशंकर प्रसाद का परिवार धन से बहुत संपन्न था और उन्हे कोई कमी नहीं थी लेकिन सच ही कहते है लोग की हलात कभी भी एक जैसी नहीं रहती
जयशंकर प्रसाद जब मात्र 16 साल के थे तो उनकी माता और बड़े भाई का निधन हो गया था थोड़े समय बाद ही पिताजी की भी मृत्यु हो गई और उनकी मुशकीले बढ़ती गई
उनके सिर पर घर की सारी जीमेदारी आ गई इतने छोटे से बच्चे पर घर की जिम्मेदारियां आ जाना बहुत बड़ी बात होती है
उनके साथ उनके बड़े भाई शम्भूरत्न जी इतनी मुश्किलों में भी उनका सहारा बनकर खड़े रहे उनकी पढ़ाई का प्रबंध भी किया
लेकिन दो-तीन साल बाद जय शंकर प्रसाद जी के भाई की भी मृत्यु हो गई रिश्तेदार उनकी जमीन जायदाद को हड़पने के लिए आगे आ गए लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी तथा उन्होंने अपने रिश्तेदारों के
ऐसा करने से रोक लिया पिता और भाई के मरने के बाद उनके सिर पर काफी कर्जा आ गया था लेकिन उन्होंने फिर भी कभी हार नहीं मानी
जयशंकर प्रसाद की शिक्षा –
बड़े भाई शंभुरत्न जी ने ही जयशंकर प्रसाद की शिक्षा का जिम्मा उठा लिया था वह चाहते थे कि प्रसाद अच्छा पढ़ लिखकर या तो बड़ा वकील बने नहीं तो फिर उनके घरेलू व्यापार को संभाले
जयशंकर को उनके भाई ने क्वीस कॉलेज नामक विद्यालय में एडमिशन दिलाया था वहां पर कुछ दिन तो वह जमकर पढ़े लेकिन कुछ समय के बाद
उनका मन पढ़ाई से उठ गया जिसके बारे में उनके भाई को पता चल गया और वह बहुत क्रोधित हुए
लेकिन समय के साथ वो यह समझ गए कि जय शंकर प्रसाद जी का मन पढ़ाई की जगह कविताएं लिखने में लग रहा है जिसके चलते उनके भाई ने उनको स्कूल छुड़वा दिया
उन्होंने प्रसाद की पढ़ाई का इंतजाम उनके घर पर ही कर दिया जिसके चलते उन्होंने घर पर ही रहकर संस्कृत, उर्दू, हिन्दी और फ़ारसी जैसी भाषाएँ सीखी
जय शंकर प्रसाद जी के गुरु का नाम –
इनके गुरु का नाम दीनबंधु ब्रह्मचारी था जो उन्हे संस्कृत में निपुण कर रहे थे तथा उन्हे वेदों, इतिहास, पुराणों और साहित्य को पढ़ने में भी उन्हें महारत हासिल करा रहे थे
जय शंकर प्रसाद जी का विवाह –
जयशंकर प्रसाद के वैवाहिक जीवन के बारे में बहुत ही कम जानकारी है ऐसा माना जाता है की 1906 ईस्वी में उनका विवाह विंध्यवाटिनी से हो गया था
ऐसा भी कहा जाता है की इस विवाह के पीछे एक कहानी है असल में उनके बड़े भाई की मृत्यु के कारण घर में बहुत उदासी छा गई थी
घर का माहौल बहुत खराब तथा उदासी वाला रहने लगा था जिसके चलते उनकी भाभी ने सोचा कि अगर प्रसाद का विवाह करवा दिया जाएगा तो घर में खुशियां जरूर वापिस आ जाएंगी
उनकी भाभी ने उनका विवाह विंध्यवाटिनी से करवा दिया लेकिन यह विवाह भी ज्यादा दिन चल सका क्योंकि विंध्यवाटिनी की किसी कारण से मृत्यु हो गई
अपनी पत्नी की मौत से जयशंकर प्रसाद को गहरा झटका लगा जिसके बाद उन्होंने प्रण किया कि वह पतिव्रत निभाते हुए
दूसरी शादी कभी नहीं करेंगे लेकिन भाग्य के आगे उनकी एक भी ना चली और उनका विवाह कमला देवी से हो गया तथा उन्हे एक पुत्र की प्राप्ति भी हुई
jaishankar prasad ka jivan Parichay तथा उनके शौक –
जयशंकर प्रसाद को अनेक चीजों का शौक था जैसे की उन्हें घूमने-फिरने तथा कविताएं और कहानियां लिखने का शौक था
वह खाली समय में शतरंज खेलते तथा बागवानी करते थे इसके अलावा कई प्रकार का खाना बनाना भी उनका एक बड़ा शौक था
उन्हें नई भाषाएँ सीखने में आनंद की अनुभूति होती थी वह बहुत धार्मिक भी थे
जयशंकर प्रसाद की धार्मिक यात्राएं | Jaishankar prasad ka Jivan Parichay
जयशंकर प्रसाद ने अपने बचपन के दिनों में अपनी माता के साथ खूब धार्मिक यात्राएं की थी उन्होंने पुष्कर, उज्जैन, धाराक्षेत्र, ओंकारेश्वर और ब्रज आदि तीर्थों की यात्रा की
उन्होंने चार धाम की यात्राएं भी की थी इनको भगवान के प्रति सच्ची आस्था हो गई थी जिसका एक मात्र कारण ये भी था की इनके दादा और पिता शिव भक्त थे
उनकी जीवन की एक कहानी बहुत ही प्रसिद्ध है कहते हैं कि जब प्रसाद जी का जन्म होने वाले थे तो उनके माता-पिता भगवान शिव की खूब आराधना तथा पूजा करते थे
उनकी माता जब गर्भवती थी तो उन्होंने बैजनाथ और महाकाल बाबा की खूब आराधना की जिसके परिणाम स्वरूप जय शंकर प्रसाद भी धार्मिक स्वभाव के हो गए
जयशंकर प्रसाद की साहित्यिक विशेषताएं –
बचपन से ही जय शंकर प्रसाद की रुचि साहित्य की ओर थी तथा बचपन में ही इन्दु’ नामक मासिक पत्रिका का इन्होंने सम्पादन किया साहित्य जगत में इन्हें वहीं से पहचान मिली उनके द्वारा की गई रचनाओ का वर्णन हमने नीचे किया है
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली –
शूरवात में जयशंकर प्रसाद जी ने ब्रजभाषा भाषा शैली का प्रयोग किया था जिसका प्रयोग उस समय ज्यादातर लेखक किया करते थे। ऐसा नहीं है
की वह सिर्फ ब्रजभाषा शैली का ही प्रयोग करते थे। उन्होंने खड़ी बोली को भी अपनी कृतियों में अपनाया है
इन्होंने जो भी कृतियों लिखी है उन में भावनात्मक, विचारात्मक और चित्रात्मक रूप अच्छे से झलकता था उन्होंने अपनी रचनाओं को बेहद सरल भाषा में लिखने का पूरा प्रयास किया है
जयशंकर प्रसाद का निधन | jaishankar prasad ji ka jivan parichay
जय शंकर प्रसाद की मृत्यु 15 नवंबर 1937 को बनारस, उत्तर प्रदेश में 47 बर्ष की आयु में हो गई थी उन्होंने अकेले रहकर ही अपने अंतिम दिन गुजारे थे
मौत से काफी समय पहले ही उनका मोह माया से रिश्ता टूट गया था और वो काफी समय से किसी बीमारी से जूझ रहे थे
उन दिनों में वह इरावती नामक उपन्यास लिख रहे थे उनके दोस्त और परिवार वाले यह चाहते थे कि वह बनारस की जगह कहीं और अपनी बीमारी का इलाज करवाए
लेकिन जयशंकर ने उनकी बात नहीं मानी और आखिरकार वह इस दुनिया को अलविदा कह गए
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कहानियां –
जय शंकर प्रसाद ने अपने जीवन काल में की कहानिया लिखी है जिनमे से कुछ निम्नलिखित है
- जहांआरा
- मधुआ
- उर्वशी
- इंद्रजाल
- गुलाम
- देवदासी
- बिसाती
- प्रणय-चिह्न
- नीरा
- शरणागत
- चंदा
- गुंडा
- स्वर्ग के खंडहर में
- पंचायत
- ग्राम
- भीख में
- चित्र मंदिर
- ब्रह्मर्षि
- पुरस्कार
- रमला
- छोटा जादूगर
- बभ्रुवाहन
- विराम चिन्ह
- सालवती
- अमिट स्मृति
- रसिया बालम
- सिकंदर की शपथ
- आकाशदीप
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखी गई कविताएं | jay shankar prasad jeevan parichay
जय शंकर प्रसाद की कविताओं के नाम इस प्रकार हैं-
- अपलक जगती हो एक रात
- वसुधा के अंचल पर
- जग की सजल कालिमा रजनी
- मेरी आँखों की पुतली में
- कितने दिन जीवन जल-निधि में
- पेशोला की प्रतिध्वनि
- शेरसिंह का शस्त्र समर्पण
- अंतरिक्ष में अभी सो रही है
- मधुर माधवी संध्या में
- ओ री मानस की गहराई
- निधरक तूने ठुकराया तब
- अरे!आ गई है भूली-सी
- शशि-सी वह सुन्दर रूप विभा
- अरे कहीं देखा है तुमने
- काली आँखों का अंधकार
- चिर तृषित कंठ से तृप्त-विधुर
- जगती की मंगलमयी उषा बन
- कोमल कुसुमों की मधुर रात
- अब जागो जीवन के प्रभात
- तुम्हारी आँखों का बचपन
- आह रे,वह अधीर यौवन
- आँखों से अलख जगाने को
- उस दिन जब जीवन के पथ में
- हे सागर संगम अरुण नील
जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखे नाटक | Jaishankar prasad ka Jivan Parichay
प्रसाद ने कुल 13 नाटकों की सर्जना की है जिसमे आठ ऐतिहासिक, तीन पौराणिक और दो भावात्मक नाटक शामिल है तथा उसमे से ‘कामना’ और ‘एक घूँट’ को छोड़कर ये नाटक मूलत इतिहास पर आधारित हैं
उन्होंने अपने नाटक की समग्री महाभारत से लेकर हर्ष के समय तक के इतिहास से ली है उनके कुछ प्रमुख नाटक निम्नलिखित है
- स्कंदगुप्त
- चंद्रगुप्त
- राज्यश्री
- कामना
- एक घूंट
- ध्रुवस्वामिनी
- जन्मेजय का नाग
- यज्ञ
जयशंकर प्रसाद की रचनाएं तथा उनके प्रकाशित वर्ष
काव्य या कविताएं
काव्य – महाराणा का महत्व, प्रेमपथिक, झरना, चित्रधार, कानन कुसुम, तरुणालय, आँसू, लहर, कामायनी और प्रसाद संगीत
आँसू | 1925 ईस्वी |
लहर | 1933 ईस्वी |
कामायनी | 1936 ईस्वी |
प्रेम पथिक | 1909 ईस्वी |
झरना | 1918 ईस्वी |
चित्राधार | 1918 ईस्वी |
कानन कुसुम | 1918 ईस्वी |
महाराणा का महत्व | 1928 ईस्वी |
जय शंकर प्रसाद की कहानिया –
कहानी – प्रकाशद्वीप, छाया, प्रतिध्वनि,आँधी और इन्द्रजाल।
इंद्रजाल | 1936 ईस्वी |
छाया | 1912 ईस्वी |
आँधी | 1931 ईस्वी |
आकाशदीप | 1929 ईस्वी |
प्रतिध्वनि | 1926 ईस्वी |
जय शंकर प्रसाद के नाटक –
नाटक – सज्जन, जनमेजय का नागयज्ञ, कामना, स्कन्दगुप्त, प्रयश्चित, कल्याणी-परिणय, राज्यश्री, विशाख, अजातशत्रु, चंद्रगुप्त, एक घूँट, ध्रुवस्वामिनी और अग्निमित्र।
कल्याणी परिणय | 1912 ईस्वी |
प्रायश्चित | 1914 ईस्वी |
सज्जन | 1911 ईस्वी |
करुणालय | 1913 ईस्वी |
राज्यश्री | 1920 ईस्वी |
विशाख | 1921 ईस्वी |
अजातशत्रु | 1922 ईस्वी |
जनमेजय का नागयज्ञ | 1926 ईस्वी |
कामना | 1924 ईस्वी |
स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य | 1928 ईस्वी |
एक घूंट | 1929 से 1930 ईस्वी |
अग्निमित्र | 1944 ईस्वी |
ध्रुवस्वामिनी | 1933 ईस्वी |
चन्द्रगुप्त | 1931 ईस्वी |
jay Shankar prasad Jeevan Parichay तथा उपन्यास
उपन्यास – कंकाल, तितली और इरावती।
कंकाल | 1929 ईस्वी |
इरावती | अपूर्ण |
तितली | 1934 ईस्वी |
अन्य रचनाएँ | Jaishankar prasad ka Jivan Parichay
चंपू – उर्वशी और वभुवाहन।
जीवनी – चंद्रगुप्त मौर्य।
FAQ About Jaishankar Prasad ka Jivan Parichay
उत्तर – श्री मोहिनीलाल गुप्त जय शंकर प्रसाद के गुरु थे
उत्तर – 15 नवंबर 1937 को जय शंकर प्रसाद की मृत्यु हो गई थी
उत्तर – जय शंकर प्रसाद
उत्तर – जयशंकर प्रसाद को घूमना-फिरना बहुत पसंद था इसके अलावा उन्हे कविताएं और कहानियां लिखने का भी शौक था अपने खाली समय में वो शतरंज खेलते थे, बागवानी करते थे। यहां तक कि अनेक प्रकार के खाना बनाना भी उनका एक बड़ा शौक था।
उत्तर – जय शंकर प्रसाद जी को छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक स्तम्भ माना जाता है वो एक नाटककार, उपन्यासकार, कहानीकार और निबंधकार थे
उत्तर – कामायानी जय शंकर प्रसाद की सर्वश्रेष्ठ रचना है
उत्तर – बाबू शिवरतन साहू जय शंकर प्रसाद के दादा का नाम था
उत्तर – जय शंकर प्रसाद ने 2 शादिया की थी
उत्तर – इरावती
उत्तर – जय शंकर प्रसाद का सबसे पहला और प्रसिद्ध नाटक राजश्री है
जय शंकर प्रसाद के जीवन के बारे में कुछ और सवाल
उत्तर – 30 जनवरी 1889 को वाराणसी में जय शंकर प्रसाद का जन्म हुआ था।
उत्तर – जयशंकर प्रसाद के पिता का नाम बाबू देवी प्रसाद साहू तथा उनकी माता का नाम श्रीमती मुन्नी देवी था
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं है- झरना, पुवस्वामिनी जन्मेजय का नागयज्ञ राज्यश्री, अजातशत्रु, विशाख, एक घूँट, कामना,ऑसू, लहर, कामायनी, प्रेम पथिक (काव्य) स्कंदगुप्त चंद्रगुप्त, करुणालय, सज्जन (नाटक) छाया, प्रतिध्वनि, आकाशदीप, आँधी कल्याणी परिणय, अग्निमित्र प्रायश्चित
Conclusion –
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