स्वागत है दोस्तों अपको हमारी इस पोस्ट Kabirdas Jivan Parichay में जिसमे हमने कबीर दास जी का जीवन परिचय किया है इसमे हमे कबीर दास जी के जीवन के बारे में सारी जानकारी दी है जो की Students के बहुत काम आएगी
कबीर दास जी कौन थे | who is Kabir Das?
कबीर दास जी जो की एक महान कवि, समाज सुधारक और संत थे वैसे तो कहा जाता है की वो पेशे से बुनकर थे लेकिन उन्होंने अपनी रचनाओ के जरिए कई समाजिक बुराइयों को दूर किया जिसके कारन उने समाज सुधारक भी कहा जाने लगा
शूरवात में तो हिन्दू और मुस्लिम दोनों ने ही उनकी आलोचना की पर उनकी मृत्यु के बाद दोनों धर्मों ने उन्हे अपना संत मान लिया इसका कारन अपको इस लेख में मिल जाएगा तो चलिए जानते है कबीर दास का जीवन परिचय 500 शब्दों में
कबीर दास का जीवन परिचय 500 शब्दों में | Kabir das ka Jivan Parichay
BIOGRAPHY OF | Kabir Das in hindi |
---|---|
नाम | कबीर दास |
पालने वाली माता | नीमा |
पालने वाला पिता | नीरू |
जन्म | 1398 ईस्वी काशी में |
मृत्य | 1518 ईस्वी |
उम्र | 120 |
प्रसिद्धि का कारन | कवि व समाज सुधारक |
रचनाए | साखी, सबद , रमैनी |
कबीर दास जी का जन्म –
दोस्तों कबीर दास जी एक महान व्यक्ति थे जो की आज से लगभग 600 साल पहले जन्मे थे उनका जन्म 1398 ईस्वी में 14वीं सदी के अंत में काशी में हुआ था जो की भारत का एक प्रसिद्ध शहर है
कबीर दास जी के माता-पिता –
कुछ शोधों के अनुसार कबीर दास जी का जन्म विधवा ब्राह्मणी की कोख से हुआ था जिसने समाज के सर से उन्हे त्याग दिया था उन्होंने आपने बच्चे को तालाब के किनारे टोकरी में रखकर छोड़ दिया उसी तालाब के पास नीरू और नीमा नाम के पति पत्नी रहा करते थे
जिनकी कोई संतान नहीं थी उन्होंने बच्चे की रोने की आवाज सुनी और तालाब की तरफ या गए वहाँ पर उन्हे एक टोकरी में एक छोटा सा बच्चा मिला उस बच्चे को उन्होंने भगवान की देन समज कर अपना लिया और उसका पालन पोषण करने लगे और ऐसा भी माना जाता है की वो दोनों पति पत्नी मुसलमान थे
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कबीर दास जी के गुरु कौन थे | kabir das ke guru kaun the
उन मुस्लिम दंपति ने ही कबीर दस जी का पालन पोषण किया और वो उनकी ही देख रेख में बड़े हुए वो सब काशी में ही रहते थे कबीर दास जी को एक गुरु रमानंद के बारे में पता चला जो की उस समय काशी में ही रहते थे
रमानंद काशी में ही रहकर आपने शिष्य को भगवान विष्णु के बारे में उपदेश देते थे उनके उपदेशों के मुताबिक भगवान हर मनुष में है हर जगह है और हर चीज में है वो उस समय के एक महान हिन्दू संत थे कबीर दास जी उनके शिष्य बन गए
उन्होंने रमानंद को ही अपना गुरू मान लिया और उनके उपदेशों को सुनने तथा उनसे शिक्षा लेने लगे जिसके बाद वो धीरे धीरे हिन्दू धर्म की वैष्णव की और बढ़ने लगे इतिहासकारों का मानना है
की कबीर जी ने गुरु रमानंद जी से वैष्णव के साथ सूफी धार को भी जाना और उनसे सारा ज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने श्री राम को अपना भगवान मान लिया
कबीर दास का वैवाहिक जीवन – Kabirdas Jivan Parichay
इतिहासकारों के मुताबिक Kabir Das का विवाह वनखेड़ी बैरागी की पालिता कन्या ‘लोई’ के साथ हुआ जिनसे इन्हे कमाल और कमाली नामक दो संतानों की भी प्राप्ति हुई
जबकि कबीर को कबीर पंथ में बाल ब्रह्मचारी माना जाता है तथा इस पंथ के अनुसार कमाली तथा लोई उनकी शिष्या थी तथा कमाल उनका शिष्य था
कबीर दास जी ने लोई शब्द का प्रयोग एक जगह कंबल के रूप में भी किया है उसमे कबीर की पत्नी और संतान दोनों थे लोई को
एक जगह पुकार कर कबीर कहते हैं: कहत कबीर सुनो रे भाई, हरि बिन राखल हार न कोई ऐसा भी हो सकता है कि पहले लोई पत्नी होगी, बाद में कबीर दास जी ने उन्हे अपना शिष्या बना लिया हो
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कबीर दास जी के धर्म पर विचार | Kabir das ka Jivan Parichay
Kabir Das जी मन की पूजा में यकीन करते थे वो ईश्वर के लिए की जाने वाली दिखावटी पूजा और नवाज आदि के प्रति व्यंग कसा उनका माना था
की सबी इंसान चाहे वो हिन्दू हो जा मुसलमान वो सब एक ईश्वर की संतान है इसलिए हिन्दू और मुस्लिम दोनों उनकी आलोचना करते थे
लेकिन उन्होंने आपने गुरु के उपदेशों को ही माना तथा उन्होंने हमेशा अहंकार को त्यागने की बात कही और अंत में दोनों धर्मों के लोगों ने उन्हे अपना संत मान लिया
कबीर दास की मृत्यु –
वैसे तो कबीर दास जी की मौत पर कई सारे शोध है लेकिन उनकी मृत्यु व जीवन के बारे में कोई भी जानकारी स्पष्ट नहीं है
कुछ इतिहासकारों का मानना है की कबीर दास जी की मृत्यु 1440 में हो गई थी लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है
की कबीर दस की मौत 120 साल की उम्र में 1518 ईस्वी में उतर प्रदेश के मगहर नगर में हुई थी कहा जाता है की जब उनकी मृत्यु हुई तो हिन्दू और मुस्लिम धर्म के लोग उनकी मृत शैया को उठाने या गए
मुसलमानों ने कहा की कबीर दस जी मुस्लिम धर्म के थे ओर उनका अंतिम संस्कार मुस्लिम धर्म के अनुसार ही होगा
लेकिन हिन्दुओ ने कहा की कबीर दास हिन्दू धर्म के थे तो उनका संस्कार हिन्दू धर्म के मुताबिक होगा इस कारन उन लोगों में विवाद बढ़ गया और आखिर में ये तय हुआ की
कबीर दास जी के आधे शरीर का संस्कार हिन्दू करेंगे और आधे शरीर का संस्कार मुस्लिम करेंगे
इसके बाद उन्होंने कबीर दास जी के शरीर से चादर उठाई तो वो सब हैरान हो गए क्योंकि वहाँ कबीर दास जी के शरीर की जगह उन्हे वहाँ फूल मिले
उन्होंने इस आलोकीक दृश्य को देखकर ये माना की कबीर दास जी सवर्ग सिधार गए अंत में उन्होंने उन फूलों को आधे आधे करके आपने धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार किया कबीर दास जी की मौत जिस जिले में हुई थी उसका नाम संतकबीरनगर रखा गया
कबीर दास जी की विशेषताएं ? –
1 एकांत प्रिय –</strong>
बचपन से ही कबीर दास जी को अकेला रहना पसंद था कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है की उन्होंने कभी विवाह भी नहीं करवाया था अकेले रहने के सवाब के अकरण उनकी बुद्धिमती में बहुत विकास हुआ
2 साधूसेवी –
गुरु को ही उन्होंने अपना सगा संबधि माना और उनके प्रीत ही वे असक्तक रहे उन्होंने गुरु को सबसे बड़ा बताया उन्होंने कहा की हम सब एक ही ईश्वर की संतान है और उन्होंने मूर्ति- पूजा व ब्रम्हा अंडबरों को नकारा
3 चिंतनशील
कहा जाता है की कबीर दास जी एक चिंतनशील व्यक्ति थे उन्होंने समाज की बुराइयों पर अच्छी तरह चिंतन करके कई रचनाए की जिससे की वो समाज की बुराइयों को दूर कर सके
कबीर दास जी की प्रमुख रचनाएं –
कबीर दास जी ने समाज की बुराइयों जैसे छुआछूत , ऊंच–नीच , जाती भेदभाव को खतम करने के लिए कई सारी रचनाए लिखी उनकी रचनाओ में से मुख्य संकलन को बीजक कहा जाता है जिसके तीन भाग है
- साखी
- सबद
- रमैनी
समाज सुधार के लिए भी कबीर दास जी ने कई काम कीये उनके इन कार्य का संकलन उनके एक शिष्य धर्मदास ने कीये था कबीर दस जी ने ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ के मूल्य को भी स्थापित किया था
धर्मदास ही कबीर दास जे के लिए रचनाए लिखता था क्योंकि कबीर दास जी लिख नहीं पते थे वो अनपढ़ थे उन्होंने अपनी रचनाओ में स्पष्ट भाषा का प्रयोग किया तथा उनोहने अहंकार, नैतिक जीवन मूल्यों , सत्संगति और सदाचार इतियादी पर खुलकर लिखा
कबीर जी की कविताएं | kabir das biography in hindi
कबीर दास जी की कविताओ में एक अलग ही जादू होता है इनकी कविताएँ लोगों को बहुत प्रभावित करती है
इसके अलावा इनके कविताएँ लोगों को मार्गदर्शन देने के साथ साथ उन्हे बहुत ही सकुन भी प्रधान करती है कबीर दास जी ने अपने जीवन में बहुत सी कविताएँ लिखी है
जैसे – काहे री नलिनी तू कुमिलानी, मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै, रहना नहिं देस बिराना है, कबीर की साखियाँ, हमन है इश्क मस्ताना, कबीर के पद,भेष का अंग,साध का अंग
मधि का अंग, बेसास का अंग, सूरातन का अंग, जीवन-मृतक का अंग, सम्रथाई का अंग, नीति के दोहे,मोको कहां, साधो, देखो जग बौराना, सहज मिले अविनासी, तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के, नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार आदि इसके अलावा निमिनलिखित और कविताएँ है –
- रे दिल गाफिल गफलत मत कर
- घूँघट के पट
- गुरुदेव का अंग
- सुमिरण का अंग
- विरह का अंग
- तेरा मेरा मनुवां
- बहुरि नहिं आवना या देस
- बीत गये दिन भजन बिना रे
- राम बिनु तन को ताप न जाई
- करम गति टारै नाहिं टरी
- भजो रे भैया राम गोविंद हरी
- दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ
- झीनी झीनी बीनी चदरिया
- केहि समुझावौ सब जग अन्धा
- जर्णा का अंग
- पतिव्रता का अंग
- कामी का अंग
- चांणक का अंग
- मोको कहां ढूँढे रे बन्दे
- अवधूता युगन युगन हम योगी
- साधो ये मुरदों का गांव
- मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा
- निरंजन धन तुम्हरा दरबार
- ऋतु फागुन नियरानी हो
- रस का अंग
- कौन ठगवा नगरिया लूटल हो
- मेरी चुनरी में परिगयो दाग पिया
- अंखियां तो छाई परी
- माया महा ठगनी हम जानी
- माया का अंग
- कथनी-करणी का अंग
- सांच का अंग
- भ्रम-बिधोंसवा का अंग
- साध-असाध का अंग
- संगति का अंग
- मन का अंग
- चितावणी का अंग
- उपदेश का अंग
- सुपने में सांइ मिले
कबीर दास के दोहे | Kabir Das ke Dohe
<strong>Kabir Das एक महान कवि थे उन्होंने अपने जीवन में कई रचनाएँ की उन्मे उनके दोहे भी शामिल है Kabir Das ke Dohe भी उनकी तरह ही मीठे और महान हैं
उनके दोहे को पड़कर आत्मा को शांति मिलती है और उनसे नई सिख मिलती है Kabir das जी लिखे दोहों में से कुछ दोहे निम्नलिखित है
Kabir das Ke Dohe – कबीर दास के 10 दोहे
ज्यों तिल माहि तेल है ,
ज्यों चकमक में आग |
तेरा साई तुझ ही में है
जाग सके तो जाग
बड़ा भया तो क्या भया,
जैसे पेड़ खजूर |
पंथी को छाया नहीं
फल लागे अति दूर |
बुरा जो देखन मैं चला
बुरा न मिलिया कोय
जो मन देखा आपना,
मुझ से बुरा न कोय
दुख में सुमिरन सब करे,
सुख में करे न कोय
जो सुख में सुमिरन करे
तो दुख काहे को होय
तिनका कबहूँ ना निंदिए
जो पाँव तले होय
कबहूँ उड़ आँखों में पड़े
पीर घनेरी होय
कबीर दास के प्रसिद्ध दोहे
साई इतना दीजिए ,
जा में कुटुम समाय
मैं भी भूखा न रहूँ
साधु न भूखा जाय
लूट सके तो लूट ले
राम नाम की लूट
पाछे फिर पछताओगे
प्राण जाहि जब छूट
जाति न पूछो साधु की
पूछ लीजिए ज्ञान
मोल करो तलवार का
पड़ा रहन दो म्यान
माटी कहे कुम्हार से
तू क्या रोंदे मोय
एक दिन ऐसा आएगा
मैं रोदूँगी तोय
काल करे सो आज कर
आज करे सो अब
पल में प्रलय होएगी
बहुरि करेगा कब
कबीर दास जी के दोहे – kabirdas Jivan Parichay</h4>
लंबा मारग दूरि घर,
बिकट पंथ बहु मार।
कहौ संतों क्यूं पाइए,
दुर्लभ हरि दीदार॥
कबीर बादल प्रेम का,
हम पर बरसा आई ।
अंतरि भीगी आतमा,
हरी भई बनराई ॥
मैं मैं बड़ी बलाय है,
सकै तो निकसी भागि।
कब लग राखौं हे सखी,
लपेटी आगि॥
यह तन काचा कुम्भ है,
लिया फिरे था साथ।
ढबका लागा फूटिगा,
कछू न आया हाथ॥
कबीर सीप समंद की,
रटे पियास पियास ।
समुदहि तिनका करि गिने,
स्वाति बूँद की आस ॥
सातों सबद जू बाजते
घरि घरि होते राग ।
ते मंदिर खाली परे
बैसन लागे काग ॥
कबीर रेख सिन्दूर की
काजल दिया न जाई।
नैनूं रमैया रमि रहा
दूजा कहाँ समाई ॥
Kabir Das ke Dohe | kabirdas ka jivan Parichay
नैना अंतर आव तू,
ज्यूं हौं नैन झंपेउ।
ना हौं देखूं और को
न तुझ देखन देऊँ॥
इस तन का दीवा करों,
बाती मेल्यूं जीव।
लोही सींचौं तेल ज्यूं,
कब मुख देखों पीव॥
कबीर देवल ढहि
पड्या ईंट भई सेंवार ।
करी चिजारा सौं प्रीतड़ी
ज्यूं ढहे न दूजी बार ॥
बिन रखवाले बाहिरा
चिड़िये खाया खेत ।
आधा परधा ऊबरै,
चेती सकै तो चेत ॥
मानुष जन्म दुलभ है,
देह न बारम्बार।
तरवर थे फल झड़ी पड्या,
बहुरि न लागे डारि॥
जाता है सो जाण दे,
तेरी दसा न जाइ।
खेवटिया की नांव ज्यूं,
घने मिलेंगे आइ॥
मान, महातम, प्रेम रस,
गरवा तण गुण नेह।
ए सबही अहला गया,
जबहीं कह्या कुछ देह॥
कबीर प्रेम न चक्खिया,
चक्खि न लिया साव।
सूने घर का पाहुना,
ज्यूं आया त्यूं जाव॥
इक दिन ऐसा होइगा,
सब सूं पड़े बिछोह।
राजा राणा छत्रपति,
सावधान किन होय॥
झिरमिर- झिरमिर बरसिया,
पाहन ऊपर मेंह।
माटी गलि सैजल भई,
पांहन बोही तेह॥
जिहि घट प्रेम न प्रीति रस,
पुनि रसना नहीं नाम।
ते नर या संसार में ,
उपजी भए बेकाम ॥
कबीर दास के दोहे | Kabir ke dohe
जांमण मरण बिचारि
करि कूड़े काम निबारि ।
जिनि पंथूं तुझ चालणा
सोई पंथ संवारि ॥
कबीर कहा गरबियौ,
ऊंचे देखि अवास ।
काल्हि परयौ भू लेटना
ऊपरि जामे घास॥
सातों सबद जू बाजते
घरि घरि होते राग ।
ते मंदिर खाली परे
बैसन लागे काग ॥
तेरा संगी कोई नहीं
सब स्वारथ बंधी लोइ ।
मन परतीति न उपजै,
जीव बेसास न होइ ॥
मैं मैं मेरी जिनी करै,
मेरी सूल बिनास ।
मेरी पग का पैषणा मेरी
गल की पास ॥
हू तन तो सब बन
भया करम भए कुहांडि ।
आप आप कूँ काटि है,
कहै कबीर बिचारि॥
कबीर यह तनु जात है
सकै तो लेहू बहोरि ।
नंगे हाथूं ते गए
जिनके लाख करोडि॥
कबीर मंदिर लाख का,
जडियां हीरे लालि ।
दिवस चारि का पेषणा,
बिनस जाएगा कालि ॥
बुरा जो देखन मैं चला,
बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना,
मुझसे बुरा न कोय।
झूठे को झूठा मिले,
दूंणा बंधे सनेह
झूठे को साँचा मिले
तब ही टूटे नेह ॥
कबीर सो धन संचिए
जो आगे कूं होइ।
सीस चढ़ाए पोटली,
ले जात न देख्या कोइ ॥
FAQ about Kabirdas Jivan Parichay
उत्तर – कबीर दास जी का जन्म आज से लगभग 600 साल पहले भारत के प्रसिद्ध शहर काशी में 1398 ईस्वी में हुआ था
उत्तर- कबीर दास जी का जन्म काशी में हुआ था
उत्तर- कबीर दास जी के गुरु का नाम गुरु रमानंद था
उत्तर – कबीर दास जी के माता पिता के बारे में कोई स्पष्ट जानकारी अभी तक नहीं है
लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है की कबीर जी को किसी विधवा ब्राह्मण ने जन्म दिया था
जिसने कबीर दास को एक टोकरी में तालाब के किनारे छोड़ दिया था और उस तालाब के पास रहने वाले दंपति नीरू ओर नीमा ने उस बच्चे के आवाज सुनी उस तालाब किनारे आ गए जहां उन्हे वो बच्चा मिला और फिर उन्होंने उनका पालन पोषण किया
उत्तर – कबीर दास की मृत्यु के बारे में भी हमारे पास सटीक जानकारी नहीं है लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है की कबीर दास की मृत्यु 120 बर्ष की उम्र में 1518 ईस्वी में हो गई थी
उत्तर – इतिहासकारों के मुताबिक कबीर दास जी की पत्नी का नाम लोई था
उत्तर – Kabir das जी किसी भी भगवान के अवतार नहीं थे बल्कि वो एक महान कवि और संत थे
उत्तर – कबीर एक अरबी शब्द है कई लोग इस नाम को हिन्दू या मुस्लिम नाम समझ लेते है
उत्तर – सधुक्कड़ी एवं पंचमेल खिचड़ी कबीर जी की भाषा शैली है क्योंकि कबीर जी की रचनाओ की भाषा में अवधि, राजस्थानी, पंजाबी आदि अनेक प्रान्तीय भाषाओं के शब्दों की खिचड़ी मिलती है।
उत्तर – कबीर दास जी निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे
उत्तर – Kabir das जी एक महान कवि और संत थे उन्हे एक रहस्यवादी कवि के रूप में भी जाना जाता है जो की हिन्दू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों के गुरु थे
Conclusion –
दोस्तों हमारे पास कबीर दास के जीवन के बारे में कोई भी स्पष्ट जानकारी नहीं है इस लेख में अपको जो भी जानकारी दी गई है
वो इतिहासकारों के शोधों और रिसर्च के अनुसार ही है जो की पूर्ण रूप से स्पष्ट नहीं है लेकिन ये जानकारी आपके बहुत काम आएगी
आशा करते है की अपको हमारी ये पोस्ट Kabirdas Jivan Parichay आई हो और अपको कबीर दास का जीवन परिचय और उनके दोहे मिल गए होंगे
कबीर दास जी एक महान संत ओर कवि थे उन्होंने आपने जीवन में बहुत सी रचनाए की ताकि वो समाज की बुराइयों को खत्म कर सके
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You have explained it in such a nice way, I appreciate it.