नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट Rahimdas ka Jivan Parichay में हम आपको रहीम दास के जीवन के बारे में बताएंगे हमारे भारत में ऐसे की कवि हुए है
जिनकी रचनाओ से हमे कुछ नया सीखने को मिलता है तथा उनसे हमे प्रेरणा मिलती है ऐसे ही महान कवीओ में से एक कवि थे रहीम दास जी जो की हिंदी साहित्य के एक महान कवि थे
इसे भी पढे – कबीर दास जी का जीवन परिचय
रहीम दास जी कौन थे ? –
रहीम दास जी को मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक माना जाता है उनका असली नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना था वो एक महान कवि होने के साथ-साथ अच्छे कूटनीतिज्ञ, कलाप्रेमी, साहित्यकार सेनापति, आश्रयदाता, दानवीर, और ज्योतिष भी थे
नाम | रहीम दास |
असली नाम | अब्दुल रहीम खान-खाना |
जन्म की तिथि | 17 December 1556 |
पिता का नाम | बैरम खान |
माता का नाम | सुल्ताना बेगम |
आयु | 70 बर्ष |
धर्म | मुस्लिम |
पेशा तथा उपलब्धि | कवि तथा अकबर के नवरत्न |
मृत्यु की तिथि | 1 October 1627 |
मृत्यु स्थान | चित्रकूट (भारत) |
Rahim Das ji का जन्म और माता पिता –
रहीम जी का जन्म 17 दिसम्बर 1556 को लाहोर में हुआ था उनके पिता का नाम बैरम खान था जो की एक तुर्की परिवार में से थे और हुमायूँ की सेना में शामिल हो गए थे
उन्होंने ही हुमायूँ को अपना सम्राज्य फिर से हासिल करने में मदद की थी हुमायूँ ने जमाल खान की बड़ी बेटी से पहले खुद निकाह किया
फिर जमाल खान की छोटी बेटी सुलताना बेगम से बैरम खान का निकाह करवा दिया जिनसे उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई जो की रहीम दास जी थे
रहीम दास जी के पिता की मौत | Rahim ji ka Jivan Parichay
अकबर के शासन काल में किसी कारण से अकबर और बैरम खान के बीच विवाद हो गया तो अकबर ने उन्हे हज के लिए भेज दिया
रास्ते में बैरम खान गुजरात के पाटन में आराम करने के लिए रुके थे जहां पर उनके जानी दुश्मन अफ़गान सरदार मुबारक खान ने उनकी पीठ में छुरा डालकर उनकी धोके से हत्या कर दी
उस समय उनकी बेगम अहमदाबाद में थी जब अकबर को बैरम खान की मौत का पता लगा तो उसने सुलताना बेगम को अपने पास बुला लिया
जैसे ही सुलताना बेगम अकबर के दरबार में हाजिर हुई तो अकबर ने रहीम को अपने पुत्र के समान कहकर उसकी देखबाल का सारा जिमा उठाया
फिर बाद में उसने सुलताना बेगम से निकाह कर लिया तथा उसे “मिर्जा खान” की उपाधि भी दी
रहीम दास की शिक्षा –
मुल्ला मुहम्मद अमीन ने रहीम दास जी को शिक्षा दी उन्होंने रहीम जी को तुर्की,अरबी तथा फारसी भाषा का ज्ञान दिया तथा उन्हे चंद रचना और फारसी व्याकरण का भी ज्ञान दिया जिसके चलते रहीम दास जी ने अनेक रचनाएँ की और उनके दोहे और रचनाएँ आज भी पढे जाते है
इसे भी पढे – सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय
रहीम दास जी का विवाह –
रहीम दास जी की शिक्षा पूरी हो जाने पर अकबर ने 16 साल की उम्र में रहीम दास जी का विवाह मिर्जा अजीज कोका की बहन माहबानों से करवा दिया जिससे उन्हे दो बेटियाँ और तीन बेटे हुए अकबर ने ही रहीम के बेटों का नाम रखा था उनका नाम दाराब, फ़रन और इरीज था
इसके बाद रहीम का दूसरा विवाह भी हुआ जो की सौदा जाति की एक लड़की थी उनसे रहीम दास जी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम रहमान दाद रखा गया फिर रहीम दास जी का तीसरा विवाह एक दासी से हुए जिनसे उन्हे एक ओर पुत्र की प्राप्ति हुई जिसका नाम मिर्जा अमरुला रखा गया
रहीम जी की कृष्ण भक्ति –
अकबर के दरबार में सभी धर्मों को एक समान सम्मान दिया जाता था इसलिए उनके दरबार में बहुत से दरबारी दूसरे धर्मों के थे रहीम दास जी भी कृष्ण के भक्त थे और अकबर के दरबार में रहीम जी को कभी भी कृष्ण भक्ति को लेकर विरोध का सामना नहीं करना पड़ा
रहीम दास जी की कृष्ण भक्ति और हिन्दू धर्म को समान देने को देखते हुए ही उन्हे रहीम दास जी कहा जाने लगा जिसके बाद उनकी गिनती सूरदास और तुलसीदास जी जैसे कवियों के बीच में होने लगी उन्हे ज्योतिषी पर भी दो पुस्तके लखी तथा उनकी रचनाओ को आज भी पुस्तकों में देखा जा सकता है
रहीम दास जी का साहित्यक जीवन | Rahimdas ka Jivan Parichay
हिंदी साहित्य में रहीम दास जी का बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है रहीम जी ने अपने जीवनकाल में हिंदी, फ़ारसी,संस्कृत, अरबी जैसी कई भाषाओं का अध्ययन किया रहीम जी अकबर के दरबार में की पदों पर नियुक्त थे तथा वो अकबर के दरबार के नवरत्नों में भी शामिल थे इतने काम होते हुए भी उन्होंने अपने काम को संभालने के साथ साथ हिंदी साहित्य में भी अपना योगदान दिया
रहीम दास जी बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले इंसान थे वो दानवीर होने के साथ साथ एक अच्छे योद्धा भी थे उन्होंने अपनी रचनाओ में रहीम की जगह रहिमन का प्रयोग अधिक किया है रहीम जी को इतिहास और काव्य जगत में अब्दुल रहीम खाने-ए-खाना के नाम से जाने जाते है
उनके जीवन की सबसे अलग बात ये थी की वो मुसलमान होते हुए भी श्री कृष्ण की भक्त थे उनकी काव्य रचनाओं में नीति,भक्ति–प्रेम, और श्रृंगार रस आदि का अधिक समावेश है
रहीम दास जी की भाषा शैली | Rahimdas ka Jivan Parichay
रहीम दास जी ने अपनी रचनाओ में बहुत ही सरल भाषा का प्रयोग किया है इनकी रचनाओ में मुख रूप से ब्रज भाषा का प्रयोग देखने को मिलता है इसके अलावा भी रहीम जी ने ज्यादातर रचनाओ में खड़ी बोली और अवधि भाषा का भी प्रयोग किया है इन्होंने गहरी और बड़ी बात को सरल भाषा में समझाया है इन्होंने अपनी रचनाओ में तद्भव शब्दों का प्रयोग अधिक किया है
उनकी रचनाओ से पता चलता है की वो हिंदी संस्कृत से अच्छी तरह परिचित थे तथा हिंदी, अरबी फारसी और संस्कृत भाषाओ का भी उन्हे ज्ञान था रहीम जी के दोहे को दोहावली के नाम से संग्रहीत किया गया है जिसमे कुल 300 दोहे है
रहीम दास जी की मृत्यु –
अकबर की मृत्यु के बाद अकबर के बेटे जहांगीर को राजा बनाया गया लेकिन रहीम इस पक्ष में नहीं था की जहांगीर को राजा बनाया जाए इसलिए रहीम के दो बेटों को जहांगीर ने मरवा दिया तथा 1623 ईस्वी में शाहजहां के विद्रोह पर उन्होंने जहांगीर के विरुद्ध उनका साथ भी दिया और उसके बाद चित्रकूट में 1 October 1627 को 70 साल की उम्र में रहीम दास जी की भी मृत्यु हो गई उसके बाद उनके शव को दिल्ली लाया गया और खान-ए-खाना मकबरे में दफनाया गया
People also read – महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
रहीम दास जी की रचनाएँ | Rahim das ji ka Jivan Parichay
रहीम जो कई सारी भाषाओ का ज्ञान था जिसके चलते उन्होंने वाकयात बाबरी नाम के एक तुर्की भाषा के लिखे ग्रंथ को फारसी भाषा में अनुवाद किया है तथा इसके अलावा
उन्होंने फारसी भाषा में बहुत सारी कविताओ की रचना भी की है रहीम जी ने ‘खेट कौतूक जातकम्’ नाम के एक ज्योतिष ग्रन्थ की भी रचना की है,
इस ग्रन्थ में इन्होने संस्कृत शब्दों के साथ-साथ फ़ारसी शब्दों का भी अनूठा मेल बैठाया है रहीम जी के संग्रह का वर्णन कुछ इस प्रकार है –
- बरवै नायिका-भेद
- रास पंचाध्यायी
- रहिमन विनोद
- रहिमन शतक (लाला भगवानदीन)
- श्रृंगार सतसई
- रहीम सतसई
- मदनाष्टक
- रहीम रत्नावली
- रहीम विलास
- रहीम कवितावली
- रहिमन चंद्रिका
कला पक्ष –
Rahim das ji को अनेक भाषाओं का ज्ञान था तथा वो एक विद्वान थे उन्होंने अपने काव्य रचनाओ में ब्रज भाषा का प्रयोग किया है
इनकी रचनाओ में संस्कृत भाषा के तत्सम शब्दों के साथ-साथ दूसरी भाषाओं के शब्द भी पाए जाते हैंइन्होंने सवैया, भैरव इत्यादि छंदों का प्रयोग भी अपने काव्य में किया है
इसके अलावा भी इन्होंने गीत शैली में भी कुछ रचनाएं की हैं अलंकारों का स्वाभाविक रूप भी रहीम जी की कविताओ में मिलता है, उन्होंने उत्प्रेक्षा, उपमा,रूपक, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग किया है
भाव पक्ष (Bhav Paksh)
रहीम के नीति संबंधी दोहे इतने प्रसिद्ध है की इनके नीति के दोहे लोगों की जुबां पर रहते हैं
उसमें कवि के जीवन के खट्टे मीठे अनुभव की छाप है इनकी नीति संबंधित कविता का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि उसमे दैनिक जीवन की अनुभूतियों पर आधारित जस्ट है
खान-ए-खाना मकबरा –
अपनी बेगम की याद में रहीम जी ने खान ए खाना मकबरे का निर्माण करवाया गया था, जिनकी मृत्यु 1598 ईस्वी में हो गई थी लेकिन बाद में रहीम दास जी की मौत के बाद उन्हे भी इसी मकबरे में दफनाया गया था
रहीम दास के जीवन परिचय से जुड़े कुछ तथ्य | रहीम दास जी का जीवन परिचय
1.Rahim das ji ने 5 बर्ष की आयु में ही अपने पिता को खो दिया था गुजरात के पाटन नगर में इनके पिता की हत्या कर दी गई जिसके बाद इनका पालन-पोषण स्वयं अकबर की देखरेख में हुआ था
2. अकबर ने 1572 ईस्वी में इनकी कार्य क्षमता से प्रभावित होकर गुजरात की चढ़ाई के अवसर पर इन्हें पाटन की जागीर प्रदान की थी अकबर के शासन काल में इनकी पद में लगातार उनीति होती रही
3.गुजरात विजय के बाद 1576 उसवू में इन्हें गुजरात की सूबेदारी मिली
4. 1579 में इन्हें मीर अर्जु का पद मिला
5. इन्होंने बड़ी योग्यता से 1583 में गुजरात के उपद्रव का दमन किया
6. 1584 ईस्वी में अकबर ने प्रसन्न होकर इन्हें खानखाना की उपाधि और पंचहजारी का मनसब प्रदान किया
7. 1589 में रहीम दास जी को वकील की पदवी से सम्मानित किया गया
8. जब 1604 ईस्वी में शहजादा दानियाल की मृत्यु और अबुलफजल की हत्या हो गई उसके बाद इन्हें दक्षिण का पूरा अधिकार मिल गया
9. शाहजहां ने 1623 ईस्वी को जहांगीर के विरुद्ध विद्रोह किया जिसमे रहीम ने शाहजहाँ का साथ दिया
10. फिर 1625 ईस्वी में क्षमा याचना करने पर पुन इन्हे खानखाना की उपाधि मिली
रहीम दास जी के प्रसिद्ध दोहे | रहीम दास जी का जीवन परिचय
1.
रहिमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुरे,
जुरे गांठ परी जाय।
अर्थ - रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का नाता बहुत ही नाजुक होता है इसे तोड़ना नहीं चाहिए यदि ये एक बार टूट गया तो फिर वापिस नहीं जुड़ता और अगर जुड़ भी गया तो इसमे गांठ पड़ जाती है
2.
वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं,
नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने साधुन धरा सरीर
अर्थ – रहीम जी कहते है की जिस प्रकार वृक्ष अपने फल कभी नहीं खाते, नदी अपना जल को कभी नहीं पीती ,उसी तरह सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं
3.
लोहे की ना लोहार की,
रहीमन कहीं
विचार जा हनि मारे सीस पै,
ताही की तलवार
अर्थ - रहीम जी विचार करके कहते हैं कि तलवार ना तो लोहे की होती ना ही लोहार की, तलवार तो उस वीर की होती है जो वीरता से शत्रु का सामना करता है तथा उनके सर पर वार करके उनका अंत कर देता है
FAQ about Rahimdas ka Jivan Parichay
उत्तर – 17 दिसम्बर 1556 को लाहोर में रहीम दास जी का जन्म हुआ था। जो की अब पाकिस्तान में स्थित है
उत्तर – रहीम जी श्री कृष्ण के उपासक थे
उत्तर – रहीम दास जी के गुरु मुल्ला मुहम्मद अमीन थे
उत्तर – 1 अक्टूबर 1627 को 70 साल की आयु में रहीम दास जी की मृत्यु चित्रकूट में हुई थी
उत्तर -रहीम दास जी ने अपनी रचनाओ में की भाषाओ का प्रयोग किया है लेकिन उनकी प्रमुख भाषा शैली अवधी और ब्रज थी
उत्तर – कवि रहीम दास जी के पिता का नाम बैरम खान था
उत्तर -रहीम दास जी भक्ति काल के कवि थे
Conclusion –
आशा करते है दोस्तों की आपको हमारी ये पोस्ट RahimDas ka Jivan Parichay पसंद आई होगी और रहीम दास जी के जीवन से जुड़ी सभी जानकारी आपको इसमे मिल गई होगी
यदि फिर भी आप हमसे कुछ पुच्छन चाहते है तो कमेन्ट में पुच सकते है और अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई हो तो इसे शेयर जरूर करे
Also Read This –
1. Shivaji Maharaj ka jivan parichay
2. शाहरुख खान का जीवन परिचय हिंदी में
4 thoughts on “रहीम दास का जीवन परिचय और इतिहास | Rahim das ka Jivan parichay”