सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय | रचनाएं, भाषा शैली तथा विशेषताएँ

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कौन थे | who is Suryakant Tripathi Nirala

आज की सी पोस्ट में हम आपको Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay बताएंगे जो की भारत के ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के एक महान कवि थे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी को हिन्दी साहित्य के छायावादी युग के चार स्तंभ कारियों कवीओ में से एक माना जाता है

निराला कवि साथ बहुत ही प्रसिद्ध निबंधकार, उपन्यासकार और कहानीकार थे। वह इन सभी विधाओं में लिखने के साथ-साथ एक बहुत ही प्रसिद्ध रेखा चित्रकार भी थे

वह बहुत ही विद्रोही और क्रांतिकारी विचार वाले व्यक्ति थे जिसके चलते उन्हे अपने शुरुआती दिनों में वे अन्य काव्य प्रेमियों के द्वारा गलत सिद्ध किए जा रहे थे

लेकिन अपनी प्रतिभा के चलते उन्होंने हिंदी साहित्य में अपने कला को प्रदर्शित किया और संपूर्ण विश्व के प्रसिद्ध कवियों में से एक हो गए

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Suryakant Tripathi Nirala biography in Hindi –

नाम सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
जन्म 21 फरवरी 1896
मृत्यु 15 अक्टूबर 1961
मृत्यु का स्थान प्रयागराज (उत्तर परदेश )
जीवन काल 65 बर्ष
देश भारत

Suryakant Tripathi Nirala ka Janam kab Hua Tha – 

भारत के इस महान कवि का जन्म 21 फरवरी 1899 को बंगाल के छोटे से राज्य की महिषादल रियासत में जिला मोदिनी पुर में हुआ था इनके पिता का नाम पंडित राम सहाय त्रिपाठी था

जो की उस रियासत में एक सिपाही की नोकरी करते थे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी साहित्य के इतिहास के स्तंभ कवीओ में से के है जसीके कारण इनके जन्म को लोग हिंदी साहित्य के उद्गम का जन्म मानते हैं

पिता का नाम पंडित राम सहाय त्रिपाठी
माता का नाम रुकमणी देवी
पत्नी का नाम मनोहरी देवी
बच्चे 1 पुत्री
प्रसिद्धि का कारणलेखक और कवि
रचनाए कविता, निबंध और उपन्यास

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का बचपन (Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay)

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का बचपन बहुत ही दुख से भरा हुआ था जब वह पैदा हुए थे तब इनके पिता ने इनकी कुंडली एक पंडित को दिखाई थी तब उनका नाम उनकी कुंडली के अनुसार सुरजकुमार रखा गया था

पंडित जी ने इनके घरवालों से ये कहा था की यदि इस बच्चे का नाम सुरजकुमार रखा जायगा तो उनके पूरे परिवार के लिए ये बहुत ही शुभ होगा लेकिन बाद में इनका नाम बदल दिया गया और सूर्यकान्त रख दिया गया

लोग ये मानते थे की सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पिता का पैतृक स्थान बंगाल में नहीं, बल्कि इनका मूल निवास उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव जिले के बांसवाड़ा नामक ग्राम में है

इनके पिता को की बार इनकी छोटी पद वाली नौकरी होने के कारण अपमानित भी किया गया परंतु शांत सुबाह होने के कारण इतना अपमान होने के बाद भी चुप रहते थे

इनके पिता की तनखा भी इतनी नहीं थी कि जिससे यह अपने घर का पूरा खर्च चला सके। जिसके कारण कि वह बहुत ही सोच समझ के साथ पैसा खर्च करते थे

सोच समझ के अपीसे खर्च करने के कारण लोग उनको कंजूस भी बोलते थे, पर पंडित रामसहाय त्रिपाठी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था

अचानक कीसी कारण से सूर्यकांत जी की माता की मृत्यु हो गई सूर्यकान्त त्रिपाठी को उनकी माता रुक्मिणी देवी की मृत्यु का बहुत ही बड़ा झटका लगा था

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की शिक्षा

बंगाल के विध्यालय से ही सूर्यकांत जी ने अपनी शिक्षा पूरी की थी इन्होंने सिर्फ हाई स्कूल तक की शिक्षा ली तथा उसके बाद संस्कृत, हिंदी और बांग्ला यदि भाषाओ का अध्ययन किया

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का विवाह

केवल 15 बर्ष की आयु में सूर्यकांत जी का विवाह मनोहरा देवी के साथ हो गया था जो की रायबरेली जिले के डलमऊ नामक ग्राम के एक पंडित के परिवार से थी

इनकी पत्नी सुंदर होने के साथ साथ शिक्षित भी थी और संगीत में भी काफी रुचि रखती थी उनकी पत्नी ने ही उन्हे हिन्दी सिखाई जिसके बाद उन्होंने अपनी रचनाएँ लिखना आरंभ की उन्हे एक पुत्री के भी प्राप्ति हुई

उनका विवाह जीवन बहुत ही सुखद बतीत हो रहा था लेकिन ये ज्यादा देर तक नहीं चला उनकी पत्नी की कीसी कारण वर्ष मृत्यु हो गई

जिसके बाद वो आर्थिक मंदी से भी जुघने लगे उन्होंने की प्रकार के प्रकाशकों के लिए लिए रीडर तथा संपादक का भी काम किया ताकि वो अपनी आर्थिक मंदी ठीक कर सके

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला का संघर्ष –

सूर्यकांत जी ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया वो जब 16 से 17 साल के थे तब उनके जीवन में बहुत सी मुशकीले आने लगी लेकिन उन्होंने काभी हार नहीं मानी

उनके समय इनफ्लुएँजा नामक एक भयंकर बीमारी पूरे देश में फैल गई थी इस बीमारी ने सूर्यकान्त के परिवार को भी अपनी चपेट में ले लिया

अपनी माता को तो वो पहले ही खो चुके थे  इस बीमारी के कारण उनके पिता का देहांत हो गया

इसके बाद में उनकी पत्नी भी इसी बीमारी की चपेट में आ गई और उसने भी 2022 साल की उम्र में दम तोड़ दिया

इन के निधन के कारण सूर्यकान्त जी अंदर से टूट गए थे उनके जीवन का एकमात्र सहारा अब उनकी बेटी ही बची थी

लेकिन कुछ साल बाद में बेटी का भी मृत्यु हो गई जिससे वो बिल्कुल अकेले हो गए स्पैनिश फ्लू के विकराल रूप के कारण घर के अन्य सदस्य भी चल बसे थे

जिसके बाद रिश्तेदारों ने इनका लालन पोषण किया निराला जी शूरवात में महिषादल की नौकरी करते थे लेकिन परिवार के सभी सदस्यों की मौत होने के कारन बाकी सभी परिवार के लोगों का बोझ इन पर आ गया,

जिससे इनकी नौकरी परिवार के शेष लोगों का पेट पालने के लिए काफी नहीं थी इस तरह आर्थिक तंगी से इनका आधा जीवन गुजरा इतनी खराब परिस्थितियों में भी निराला ने कभी समझौता नहीं किया उन्होंने संघर्ष किया और अपने लक्ष की प्राप्ति की

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैली –

सूर्यकांत त्रिपाठी जी ने अपनी रचनाओ में खड़ीबोली का प्रयोग किया है इन्होंने अपनी रचनाओ की भाषा में अनेक जगह पर शुद्ध तत्सम शब्दों का भी प्रयोग किया है

जो की इनके भावों को सरलता से समझने में कठिन बना देते है जहां इनकी छायावादी रचनाओं में भाषा की क्लिष्टता मिलती है

वहीं दूसरी और इनकी प्रगतिवादी रचनाओं की भाषा अत्यन्त सरल, सरस एवं व्यावहारिक होती है

सूर्यकांत त्रिपाठी की छायावाद पर आधारित रचनाओं में कठिन एवं दुरूह शैली तथा इसकी दूसरी तरह प्रगतिवादी रचनाओं में सरल एवं सुबोध शैलियों का प्रयोग देखने को मिलता है

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की प्रमुख रचनाएं |Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay

निराला जी ने अपने जीवन में बहुत सी रचनाएँ की कवितों के अलावा भी उन्होंने की रचनाएँ की जैसे – कहानी, उपन्यास, निबंध,आलोचना एवं संस्मरण

इनकी प्रमुख काव्य रचनाएं निम्नलिखित हैं –

  • परिमल
  • अनामिका
  • गीतिका
  • तुलसीदास
  • अपरा
  • अणिमा
  • कुकुरमुत्ता
  • अर्चना
  • नए पत्ते
  • बेला
  • आराधना आदि

कुछ गद्य रचनाओं में – 

  • लिलि
  • चतुरी चमार
  • अलका
  • निरुपमा
  • अप्सरा और प्रभावती आदि

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का काव्य संग्रह –

सूर्यकांत जी के काव्य संग्रह के वर्णन कुछ इस प्रकार है –

  • प्रथम कविता – वर्ष 1923 में सूर्यकांत त्रिपाठी जी ने में अपनी पहली कविता संग्रह को अनामिका नाम से प्रकाशित किया
  • प्रथम निबंध – उनका प्रथम निबंध बंग भाषा में सरस्वती पत्रिका के द्वारा प्रकाशित हुआ
  • सवतंत्र रूप से लेखन – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने महिषादल की नौकरी को 1922 इयवी छोड़ दी और उसके बाद स्वतंत्र रूप से लेखन करने लग गए
  • समन्वय का संपादन – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने वर्ष 1923 में प्रकाशित होने वाली समन्वय का संपादन भी किया
  • मतवाला – उन्होंने 1923 को  मतवाला को एक टीम के साथ मिलकर के संपादित किया
  • गंगा पुस्तक माला – इन सभी कार्यों के बाद उन्हे लखनऊ में गंगा पुस्तक माला के प्रकाशन में भी काम किया

अपने जीवन के  कुछ वर्ष सूर्यकांत त्रिपाठी जी ने लखनऊ में बिताए और उसके बाद भी इलाहाबाद चले गए तथा वहाँ स्वतंत्र रचना करने लगे

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की काव्यगत विशेषता –

अपनी कविताओं में सूर्यकांत जी काल्पनिक घटनाओं को बहुत कम स्थान देते हुए कविताओं में यथार्थ सत्य की प्रमुखता को दर्शाया है

अपने एक काव्य संग्रह को सूर्यकांत त्रिपाठी जी ने परिमल में लिखा है जिस का अर्थ है कि जिस प्रकार मानव को मुक्ति प्राप्त होती है, ठीक उसी प्रकार ही कविताओं को भी मुक्ति प्राप्त होती है

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की कविताएं में अक्सर खड़ी बोली की प्रधानता देखने को  मिलती है तथा कविताओं की भाषा शैली बहुत सरल और स्पष्ट है

संगितात्मकता और ओज इनकी कविता की मुख्य विशेषता है। इनकी श्रृंगार रस से लेकर अन्य रसों की भी इनकी कविताओ में प्रधानता है।

अलंकार का भी कवि ने भली-भांति इस्तेमाल अपनी कविताओं में किया है रहस्यवाद, राष्ट्र प्रेम, प्रकृति प्रेम जैसे गुण इन की कविताओं में देखने को मिलते हैं

उनका जीवन संघर्षों से भरा होने के कारण ही उनकी कविताओं में शोषितो और वर्ण भेद के विरुद्ध विद्रोह, गरीबों के प्रति सहानुभूति और पाखण्ड व प्रदर्शन के लिए व्यंग्य उनके काव्य की विशेषता रही है

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के शौक –

सूर्यकान्त त्रिपाठी को कई शोक थे उनको कई प्रकार की भाषाएँ सीखने का शौक था तथा उनको आध्यात्मिक किताबें पढ़ने का भी बहुत शोक  था

स्कूल के दिनों में वह खूब मस्ती किया करते थे उनको खेलकुद, तैराकी, घुड़सवारी और घूमने फिरने से बहुत पसंद था और सभी बंगाली संगीत प्रेमियों की तरह ही उन्हे भी शास्त्रीय संगीत बहुत पसंद था

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की पत्रिका | Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay

अपनी सर्वप्रथम कविता को सूर्यकांत जी ने वर्ष 1920 में जन्मभूमि प्रभाव नामक एक मासिक पत्रिका के द्वारा प्रकाशित किया तथा अपनी प्रत्येक नई कविताओं को हर महीने इसी पत्रिका के द्वारा प्रकाशित करते थे

अपने निबंधों को बर्ष 1920 में उन्होंने सरस्वती पत्रिका के माध्यम से प्रकाशित किया जिसका मतलब है की बर्ष 1920 में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने दो पत्रिकाओं के माध्यम से अपने कविता और निबंधों को प्रकाशित कर दिया था

सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला किससे प्रभावित थे? –

बचपन से ही सूर्यकांत जी कविताएं लिखने लगे थे वह अपने खाली समय में खूब सारे लेखकों की किताबों को पढ़ा करते थे अगर सबसे ज्यादा वो किसी की किताबों से वह प्रभावित हुए तो वह थी स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस, और श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की किताबें

इन तीनों को सूर्यकांत अपना प्रेरणास्रोत मानने लगे थे तथा इन तीनों के जीवन को पढ़कर वह आध्यात्मिकता की तरफ चल पड़े थे

रामचरितमानस से लगाव हो गया तह तथा उनको रामचरितमानस कंठस्थ याद हो गया थी  वह बांग्ला भाषा के अलावा संस्कृत भाषा के भी मुरीद थे।

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु –

15 अक्टूबर 1961 को हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु हो गई थी

अपने जीवन का अंतिम समय उन्होंने प्रयागराज के दारागंज नामक मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में व्यतीत किया था इसी कमरे में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की मृत्यु हो गई थी

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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएं | Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay

अपने जीवन काल में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ने कई रचनाएँ की जिनमे काव्य-संग्रह,उपन्यास,कहानी संहरह और निबंध शामिल है जिनका वर्णन हमने नीचे किया है 

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के काव्य-संग्रह –

  • 1923 में अनामिका
  • 1930 में परिमल   
  • 1939 में तुलसीदास 
  • 1942 में कुकुरमुत्ता 
  • 1943 में अणिमा 
  • 1946 में बेला 
  • 1946 में नए पत्ते 
  • 1936 में गीतिका 
  • 1950 में अर्चना 
  • 1953 में आराधना
  • 1954 में गीत कुंज 
  • सांध्य काकली
  • अपरा (संचयन) 

निराला के उपन्यास –

  • अप्सरा 1931 में
  • अलका  1933 में
  • कुल्ली भाट  1938-39 में
  • बिल्लेसुर बकरिहा  1942 में
  • चोटी की पकड़  1946 में
  • काले कारनामे  1950 में  (अपूर्ण)
  • प्रभावती  1936 में
  • निरूपमा  1936 में
  • चमेली (अपूर्ण)
  • इन्दुलेखा (अपूर्ण) 

सूर्यकांत त्रिपाठी की कहानी-संग्रह –

  • सखी  1935 में
  • सुकुल की बीवी  1941 में
  • लिलि  1934 में
  • देवी  1947  में

निराला जी के निबंध-आलोचना –

  • रवीन्द्र कविता कानन  1929 में
  • प्रबंध प्रतिमा  1940 में
  • चाबुक  1942 में
  • चयन  1957 में
  • प्रबंध पद्म  1934 में  
  • संग्रह 1963 में

सूर्यकांत त्रिपाठी जी के पुराण-कथा –

  • महाभारत  1939 में
  • रामायण की अन्तर्कथाएं 1956 में

निराला जी के बालोपयोगी साहित्य –

  • भक्त ध्रुव 1926 में
  • भीष्म 1926 में
  • महाराणा प्रताप 1927 में
  • भक्त प्रहलाद 1926 में
  • सीखभरी कहानियां (ईसप की नीति कथाएं) 1969 में

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला के अनुवाद –

  • रामचरितमानस (विनय भाग) 1948 में
  • आनन्दमठ
  • विषवृक्ष
  • राजसिंह
  • राजरानी
  • देवी चौधरानी
  • युगलांगुलीय
  • चन्द्रशेखर
  • रजनी
  • श्रीराम कृष्णवचनामृत
  • कृष्णकांत का वसीयतनामा
  • कपालकुंडला
  • दुर्गेश नन्दिनी
  • परिव्राजक
  • भारत में विवेकानंद
  • राजयोग (अंशानुवाद)

FAQ about Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay

1.निराला कैसे कवि हैं?

उत्तर –  सूर्यकांत त्रिपाठी जी एक छायावादी कवि थे

2.सूर्यकांत त्रिपाठी का विशेष नाम क्या है?

उत्तर –  निराला जी का जब जन्म हुआ था तब उनके परिवार वालों ने उनकी कुंडिली एक पंडित को दिखाई थी तो पंडित जी ने कुंडली के अनुसार उस बच्चे का नाम सुरजकुमार रखा था लेकिन बाद में उसका नाम बदल कर सूर्यकांत त्रिपाठी रख दिया गया

3.सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म और मृत्यु

उत्तर सूर्यकांत त्रिपाठी जी का जन्म 21 फरवरी 1896 ईस्वी में हुआ तथा उनकी मृत्यु 15 ऑक्टोबरr 1961 में हुई

4.निराला के प्रिय कवि का क्या नाम है?

उत्तर – सूर्यकांत जी के प्रिय कवि तुलसीदास जी थी  उनको तुलसीदास जी का लिखा रामचरित मानस बहुत ज्यादा प्रिय था 

5.निराला जी की भाषा कौन सी है?

उत्तर – सूर्यकांत जी ने अपनी ज्यादातर रचनाओ में खड़ीबोली का प्रयोग किया है

6.निराला ने कौन सा शोक गीत लिखा है? 

उत्तर – सरोज स्मृति निराला जी का लिखा एक शोक गीत है

7.निराला के गुरु कौन थे?

उत्तर – सूर्यकांत जी स्वामी विवेकानंद, रविंद्र नाथ टैगोर और रामकृष्ण परमहंस से बहुत प्रभावित थे तथा उन्होंने उनको अपना प्रेरणा स्रोत मां लिया था

8.निराला के विरोधी कवि क्यों कहा जाता है?

उत्तर – निराला जी समकालीन मुद्दों तथा समाज की कुरीतियों पर बिना डरे बेबाक लिखते थे तथा इन मुद्दों पर इनकी पैनी दृष्टि रहती थी इसलिए बाकी कवि इनको विद्रोही कवि कहते थे

Conclusion –

आशा करते है दसोट की आपको हमारी ये पोस्ट Suryakant Tripathi Nirala ka Jivan Parichay पसंद आई होगी और आपको सूर्यकांत जी के बारे में सारी जानकारी मिल गई होगी दोस्तों यदि आप विधियार्थी है तो ये जानकारी आपके बहुत काम आएगी 

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